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Dewas News: देवास जिले में इस साल 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बोवनी

Dewas News: उप संचालक कृषि आरपी कनेरिया ने बताया कि देवास जिले में गेहूं का रकबा 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर है।

Publish Date:

Mon, 30 Oct 2023 12: 57 PM (IST)

Updated Date:

Mon, 30 Oct 2023 12: 57 PM (IST)

Dewas News: देवास जिले में इस साल 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बोवनी

बागली क्षेत्र में ट्रेक्टर एवं सीड ड्रिल से गेहूं की बोवनी करते किसान।

HighLights

  1. अधिकतर किसान कर रहे तेजस की बोवनी, रोटी में नहीं होता उपयोग
  2. लगातार बढ़ रहा है यूरिया का उपयोग
  3. 75 हजार हेक्टेयर में होगी चने की बोवनी

Dewas News: नईदुनिया प्रतिनिधि, देवास। देवास जिले में बड़ी संख्या में किसान लगातार तेजस गेहूं की बोवनी कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस वेरायटी का गेहूं रोटी बनाने में उपयोग नहीं किया जाता है। तेजस गेहूं से सिर्फ दलिया, रवि, पास्ता आदि बनता है, परन्तु अत्यधिक पैदावार के कारण किसान इसी वेरायटी का गेहूं लगा रहे हैं।

गेहूं के रकबे में बड़ा रकबा तेजस काइस वर्ष जिले में 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर के गेहूं के रकबे में बड़ा रकबा तेजस का बताया जा रहा है। चिंता की बात यह है कि किसान लगातार यूरिया सहित अन्य उर्वरकों का उपयोग अधिक कर रहे हैं, जिससे जमीन की सेहत खराब होने के साथ ही बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। विशेषज्ञ भी इसे लेकर चिंतित हैं।

लोकवन और शरबती जैसे गेहूं का रकबा लगातार घट रहा

समर्थन मूल्य पर बेचे जाने वाले गेहूं में भी अधिकतम मात्रा तेजस गेहूं की होती है। खास बात यह है कि रोटी बनाने के लिए उपयोगी लोकवन और शरबती जैसे गेहूं का रकबा लगातार घट रहा है। साथ ही पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष यूरिया व अन्य उर्वरक भी ज्यादा पैदावार के लिए ज्यादा दिया जा रहा है।

जिले में गेहूं का रकबा 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर

उप संचालक कृषि आरपी कनेरिया ने बताया कि जिले में गेहूं का रकबा 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर है। इसी प्रकार चने का रकबा 75 से 60 हजार हेक्टेयर रहने की संभावना है। उन्होंने बताया कि जिले में पर्याप्त खाद है और प्रतिदिन आ रहा है एवं वितरण भी हो रहा है। यूरिया, एनपीके, डीएपी की कोई समस्या नहीं है।

उन्होंने बताया कि आमतौर पर 1 बीघा में एक बोरी यूरिया (45 किलो) ही डालना चाहिए। जानकारी के अनुसार अभी किसान इससे ज्यादा मात्रा में यूरिया डाल रहे हैं। कई किसान अधिक पैदावार के लिए खेत में दो बाेरी यूरिया तक डाल रहे हैं। ऐसा करने से लागत तो बढ़ ही रही है साथ ही यूरिया खाद अधिक मात्रा में डालने से जमीन कड़क हो रही है और पानी भी ज्यादा लगने लगा है।

उन्होंने बताया कि उर्वरक और पेस्टीसाइड का अधिक उपयोग करने से विभिन्न बीमारियां फैलने का खतरा है। यह सलाह भी दी जा रही है कि कुछ जमीन पर जैविक खेती करना प्रारंभ करें। इससे जमीन का स्वास्थ्य सुधरेगा और बीमारियों से भी बचेंगे। प्राकृतिक खेती की ओर जाएं और उर्वरक का कम से कम उपयोग करें।

ज्यादा पैदावार वाले गेहूं की बोवनी

जानकारी के अनुसार किसान पिछले कुछ वर्षों में सिर्फ उसी गेहूं की बोवनी कर रहे हैं, जो अधिक पैदावार दे। इस कड़ी में तेजस वेरायटी का गेहूं सबसे ज्यादा सफल माना जा रहा है। हालांकि इसका उपयोग आमतौर पर घरों में रोटी बनाने के लिए नहीं किया जाता। इससे सबसे ज्यादा दलिया, सूजी, पास्ता आदि बनता है। तेजस की उपज 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसके विपरित अन्य अच्छी वेरायटी के गेहूं की पैदावार 45 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

धीरे-धीरे कम होती है पोषकता

कृषि वैज्ञानिक डा. संदीपसिंह तोमर ने बताया कि अधिक यूरिया डालने से पोषकता धीरे-धीरे कम होती जाएगी। फसल गिरने की समस्या भी बढ़ जाएगी। धीरे-धीरे जमीन की उर्वरक क्षमता कम होती जाएगी। उर्वरक का रेशो विशेषज्ञों की सलाह अनुसार रखा जाना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि उर्वरकों का संतुलित उपयोग किया जाए। पौधे में बीमारी भी एक समय के बाद बढ़ जाएगी। इनसेक्टीसाइड का उपयोग करने से होने वाले अनाज का सेवन करने से लोगों में भी बीमारी हो सकती है।