Select Page

Taste Of Indore: कुछ इस तरह और भी जायकेदार बन जाती है रसीली इमरती

Taste Of Indore: कुछ इस तरह और भी जायकेदार बन जाती है रसीली इमरती

Taste Of Indore: जलेबी की तरह ही जिसका ओर-छोर पता नहीं चलता, जो बड़ी बहन जलेबी की तरह ही घी में तली जाती है।

Publish Date:

Sat, 07 Oct 2023 10: 56 AM (IST)

Updated Date:

Sat, 07 Oct 2023 10: 57 AM (IST)

Taste Of Indore: कुछ इस तरह और भी जायकेदार बन जाती है रसीली इमरती

इमरती किसी मौसम की मोहताज नहीं, लेकिन इन दिनों इसकी पूछ-परख कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई है। फोटो : प्रफुल्ल चौरसिया, आशु

HighLights

  1. इमरती के बारे में कहा जाता है कि कभी इसका नाम अमृतीय था, जो वक्त के साथ बदलकर इमरती हो गया।
  2. मान्यतानुसार श्राद्ध में उड़द की दाल का महत्व अधिक है और इमरती उड़द की दाल से ही बनती है।
  3. इमरती की दुकान पर भीड़ का नजर आना ‘डायबिटीज’ और ‘डायटिंग’ जैसे शब्दों को मुंह चिढ़ाने के समान लगता है।

Taste Of Indore: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। भारत की पारंपरिक मिठाई का जब उल्लेख होता है, तो जलेबी का नाम सबसे पहले आता है। शायद इसलिए ही इसे राष्ट्रीय मिठाई भी कहा जाता है। किंतु इसके बाद जो नाम आता है, उसकी दीवानगी भी कुछ कम नहीं है। जलेबी की तरह ही जिसका ओर-छोर पता नहीं चलता, जो बड़ी बहन जलेबी की तरह ही घी में तली जाती है…और तो और यह भी चाशनी में डुबकी लगाकर लजीज बनती है। यहां जिक्र हो रहा है इमरती का, जिसके बारे में कहा जाता है कि कभी इसका नाम अमृतीय था, जो वक्त के साथ बदलकर इमरती हो गया।

यूं तो इमरती किसी मौसम की मोहताज नहीं, लेकिन इन दिनों इसकी पूछ-परख कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई है। इसकी वहज है श्राद्ध पक्ष। मान्यतानुसार श्राद्ध में उड़द की दाल का महत्व अधिक है और इमरती उड़द की दाल से ही बनती है। अत: इन दिनों इसकी मांग कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। ऐसे में अगर इसका स्वाद भी अलहदा और राजसी हो तो कहना ही क्या।

शहर में इमरती कहां-कहां मिलती है, यदि यह सवाल किसी से पूछा जाए तो सैकड़ों दुकानों के नामों की फेहरिस्त हाथ में आ जाएगी। लेकिन जब आला दर्जे की इमरती के ठिकाने के बारे में पूछा जाता है तो सूची में चुनिंदा दुकानों का नाम आता है। आज के दौर में जब लोग मिठाई के सेवन से गुरेज करते हैं, ऐसे में भी इमरती की दुकान पर भीड़ का नजर आना ‘डायबिटीज’ और ‘डायटिंग’ जैसे शब्दों को मुंह चिढ़ाने के समान लगता है।

करीब 80 सालों से शहर को दे रहे हैं केसर-इलाइची युक्त स्वाद

ऐसे में अगर इमरती कुरकुरी, रसीली और केसर-इलायची युक्त हो तो कहना ही क्या। शहर के मध्य मालगंज क्षेत्र में ऐसा ही एक स्थान है, जहां इन तमाम गुणों से युक्त इस पारंपरिक मिठाई का लुत्फ लिया जा सकता है। करीब 80 वर्ष पहले भंवरलाल शर्मा ने जिस पद्धति और सिद्धांतों से इमरती बनाना शुरू किया, उन्हें आज की पीढ़ी भी निभा रही है।

अन्नपूर्णा रिफ्रेशमेंट के योगेश शर्मा बताते हैं कि उनके दादाजी के बाद पिता सत्यनारायण ने इमरती बनाने की विधि सहेजी और अब मैं वे भी इसे बना रहे हैं। यूं तो इमरती उड़द की दाल से ही बनाई जाती है, लेकिन इसे बेहतर बनाने के लिए जो पहला प्रयास है, वह है पिसी हुई दाल को अच्छे से फेंटना। यह जितनी अच्छे से फेंटी जाएगी, इमरती उतनी ही अच्छी बनेगी।

इसे देसी घी में तलकर कुरकुरा किया जाता है और फिर एक तार की चाशनी में डाला जाता है। हम इसे पतली चाशनी में इसलिए डालते हैं ताकि इमरती के अंदर तक चाशनी अच्छे से रम जाए और जिन्हें मीठा कम पसंद है, वे भी इसे खा सकें। कृत्रिम रंग के बजाय केसर और खुशबू के लिए इलायची का उपयोग किया जाता है।

इमरती हर दिन ताजा ही बनाई जाती है क्योंकि पहले से बनी रखी इमरती को चाशनी में डालने पर वह स्वाद नहीं आता, जो ताजी इमरती में आता है। चूंकि इंदौरी खानपान के परखदार भी हैं इसलिए इस मिठाई के निर्माण में हर छोटी-बड़ी बात पर ध्यान दिया जाता है।